Thursday 8 July 2010

अर्थ-विवेचन

जाने-पहचाने शब्दों के
अजनबी से अर्थ
अक्सर खड़े हो जाते हैं सामने
और अर्थों में निहित
आड़ी-तिरछी
कितनी गलियों
और चौराहों से मंतव्य .....
आकृतियाँ धकेल दी गयी हैं
परछाइयों के पीछे
निषिद्ध विवेचना
क्रिया-विश्लेषण निषिद्ध....
मूढ़ता है
अपराध है
अक्षम्य
देखना मान्य उपलब्धि व
सफलता की चमकती सतह के नीचे...
दोगले अर्थों और मंतव्यों
पर जमी हुई काई कुरेदना है मना
विवेक-दृष्टि की सतह पर जमी धूल की
सफाई है मना
सामाजिक सफलता की चमकती सतह को एलर्जी है
गर्द से
बाहर की हवा से
कहीं जाम न हो जाएँ फेंफड़े !
--लोकेश

No comments:

Post a Comment